Hanumant Singh (हनुमंत सिंह )

“प्यारे अपने गाँव में”

फटे पुराने कपड़ा  लत्ता
प्यास लगी तो नल का  हत्ता
चोट घाव में असगन  पत्ता
खाने में चटनी रोटी आलू  भत्ता
ना पहनूँ जूता चप्पल पांव में
कितना अच्छा बचपन बीता
प्यारे  अपने गाँव में।

दौड़  दौड़ खेतों  पर  जाते
गाजर मूली फलियां  खाते
कूद कूद कर खूब नहाते
डाँट पड़े ही घर को आते।
मुझे देखते ही दादी अम्मा
आ जाती थीं गुस्सा औ ताव में
कितना अच्छा बचपन बीता
प्यारे अपने गाँव में।

जोर जोर से  पहाड़े पढ़ना
गुणा जोड़  अँगुली से गणना
शौक मौज में मिल  कुश्ती लड़ना
भाग दौड़ कर पेड़ों पर चढना
आधी छुट्टी होतीं ही
खाना खाते सब  वरगदिया की छाँव में।
कितना अच्छा बचपन पीता
प्यारे अपने गाँव में।

कोल्ड-ड्रिंक में लस्सी  मट्ठा
जीन्स जगह था पजामा लट्ठा
अनाज बेचकर मुरमुरियां गट्टा
अम्मा डाँट प्यार में कहती पट्ठा।
चीटे को बैठाकर खुश हो जाते थे
कागज़ की नाव में
कितना अच्छा बचपन बीता
प्यारे अपने गाँव में।

रचनाकार – हनुमंत सिंह
(24 अक्टूबर 2020)

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